स्किज़ोफ्रेनिया का अर्थ है मनुष्य के चेहरे पर आ रही भावनाओ और व्यवहार में कोई समबंध न रहना | इसको प्राय: लोग स्प्लिट पर्स्नालिटी के नाम से भी जानते हैं |
इस रोग में रोगी वास्तविकता और अपने व्यवहार में तालमेल नहीं बैठा पाता है और रोगी को लगता है की वो सही व्यवहार कर रहा है पर लोग या उसके परिवार के सदस्य उसके व्यवहार को समझ नहीं पा रहे हैं ।
बहुत पहले इस रोग को एक प्रकार का पागलपन भी कहा जाता था और ऐसे रोगियों को मेंटल असाइलम में रख दिया जाता था यहा तक की कभी कभी उन्हे जीवनभर बेड़ियों मे बांधे रखना पड़ता था |
रोगी पर स्किज़ोफ्रेनिया के दुष्प्रभाव
मनोविदलता (Schizophrenia/स्किज़ोफ्रेनिया) एक गंभीर मानसिक विकार है |इस रोग में रोगी के विचार, संवेग, तथा व्यवहार में आसामान्य बदलाव आ जाते हैं जिनके कारण वह अपनी जिम्मेदारियों तथा अपनी देखभाल करने में असमर्थ हो जाता है।
यह कोई जानलेवा बीमारी नहीं पर मनुष्य से उसका सामाजिक जीवन छीन लेती है और उसके कार्य करने की क्षमताएँ एक लंबे समय में धीमे –धीमे कम होती जाती है और प्राय: वो शून्य पर चली जाती है और ऐसा प्रतीत होता है कि व्यक्ति कई वर्षों से कोई भी उद्देश्य और सफलता को हासिल नहीं कर पाया |
इतना ही नहीं यह रोग पूरे परिवार को प्रभावित करता है जिससे परिवार के अन्य सदस्यों पर भी इस रोग का प्रभाव दिखने लगता है यहा तक की इस स्थिति में परिवार से मुख्य रूप से जुड़े अन्य सदस्यों को भी स्किज़ोफ्रेनिया से ग्रसित परिवार’ के सदस्य की संज्ञा भी दे दी जाती है |
भारत में स्किज़ोफ्रेनिया रोग की स्थिति
आज स्क्रिज़ोफेनिआ भारत के करीब 1% लोगो में पाया जाता है l यह एक अनुवांशिक मानसिक बीमारी है जिसमे मष्तिष्क के कुछ विशेष हिस्सों मे रासायनिक परिवर्तन होता है जिससे पीड़ित व्यक्ति सामान्य व्यवहार नहीं कर पाता है l यह सामान्यतः 15-25 वर्ष की आयु से प्रारम्भ होता है परंतु इसके विभिन्न प्रकार विभिन्न आयु मे प्रारम्भ हो सकते हैं l
स्क्रिज़ोफेनिआ से विश्व में लगभग 2.73% लोग पीड़ित है और लोगो को इस रोग के बारे में अधिक जानकारी न होने के कारण इस रोग का इलाज़ जीवन भर चलता रहता है और रोगी कभी भी सामाजिक और क्रियात्विक जीवन शैली को छू नहीं पाते जो इस रोग का रोगी पर मुख्य दुष्प्रभाव माना जाता है l साथ ही साथ ये हर रूप से परिवार को अस्त व्यस्त कर देता है और परिवार के अन्य सदस्यों मैं इसके होने की सम्भावना को बढ़ा देता है
क्या है सिज़ोफ्रेनिया के कुछ प्रमुख लक्षण ?
जैसे कि शुरूआत में :
• शुरूआत में व्यक्ति लोगों से कटा-कटा रहने लगता है या अकेला रहने लगता है,तथा काम में मन नहीं लगा पाता यह कुछ महीनो से लेकर वर्षो तक और परिवार के सदस्य इसको समझ नहीं पाते
कुछ समय बाद :
• उसकी नींद में बाधाएं आने लगती हैं,
• मरीज़ पेरशान रहने लगता है, तथा उसके हाव-भाव में कुछ अजीब बदलाव आने लगते हैं,
• वह कुछ अजीब हरकतें करने लगता है जिसके बारे में पूछने पर वह जवाब देने से कतराता है,
• समय के साथ-साथ यह लक्षण बढ़ने लगते हैं जैसे कि नहाना धोना बंद कर देना, गंदगी का अनुभव नहीं होना
• वह अपनी जिम्मेदारियों तथा जरूरतों का ध्यान नहीं रख पाता,
• रोगी अक्सर खुद ही मुस्कुराता या बुदबुदाता दिखाई देता है,
• रोगी को विभिन्न प्रकार के अनुभव हो सकते हैं जैसे की कुछ ऐसी आवाजे सुनाई देना जो अन्य लोगों को न सुनाई दें, कुछ ऐसी वस्तुएं, लोग, या आकृतियाँ दिखाई देना जो औरों को न दिखाई दे, या शरीर पर कुछ न होते हुए भी सरसराहट, या दबाव महसूस होना, आदि,
• रोगी को ऐसा विश्वास होने लगता है कि लोग उसके बारे में बातें करते है, उसके खिलाफ हो गए हैं, या उसके खिलाफ कोई षड्यंत्र रच रहे हो,
• उसे नुकसान पहुँचाना चाहते हो, या फिर उसका भगवान् से कोई सम्बन्ध हो, आदि,
• रोगी को लग सकता है कि कोई बाहरी ताकत उसके विचारो को नियंत्रित कर रही है, या उसके विचार उसके अपने नहीं है,
• रोगी असामान्य रूप से अपने आप में हंसने, रोने, या अप्रासंगिक बातें करनें लगता है,
• रोगी अपनी देखभाल व जरूरतों को नहीं समझ पाता,
• रोगी कभी-कभी बेवजह स्वयं या किसी और को चोट भी पंहुचा सकता है,
• रोगी की नींद व अन्य शारीरिक जरूरतें भी बिगड़ सकती हैं।
यह आवश्यक नहीं की हर रोगी में यह सभी लक्षण दिखाई पड़े, इसलिए यदि किसी भी व्यक्ति में इनमे से कोई भी लक्षण नज़र आए तो उसे तुरंत मनोचिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए।
सिज़ोफ्रेनिया किसी भी जाति, वर्ग, धर्म, लिंग, या उम्र के व्यक्ति को हो सकता है। अन्य बीमारियो की तरह ही यह बीमारी भी परिवार के करीबी सदस्यों में आनुवंशिक रूप से जा सकती है इसलिए मरीज़ के बच्चों, या भाई-बहन में यह होने की संभावना अधिक होती है।
अत्यधिक तनाव, सामाजिक दबाव, तथा परेशानियाँ भी बीमारी को बनाये रखने या ठीक न होने देने का कारण बन सकती हैं। मस्तिष्क में रासायनिक बदलाव, या कभी-कभी मस्तिष्क की कोई चोट भी इस बीमारी की वजह बन सकती है।
सिज़ोफ्रेनिया के प्रकार
1. प्रोड्रोमल / प्रारम्भिक सिज़ोफ्रेनिया
इसमे मुख्य लक्षणो में व्यक्ति का हल्का चुप रहना ,सामाजिक रूप से कटा कटा रहना , बातचीत में विशेष भाग न लेना , कुछ खोया खोया सा रहना , रोज़मर्रा की दैनिक प्रक्रियाओं में बदलाव आना , अपने शारीरिक स्वच्छता के स्तर मे गिरावट आ जाना , काम काज और जीवनशैली के स्तर में कमी आना |
2. सिम्पल सिज़ोफ्रेनिया
इच्छाशक्ति मे कमी , असामान्य विचार , निर्णय लेने कि क्षमता मे कमी , चेहरे पे भावों कि कमी , कार्यक्षमता में गिरावट और रोगी का सामाजिक रूप से कटे कटे रहना | बुदबुदाना, अपने आप में मुस्कुराना, एक दिशा में एक टक देखते रहना
3. पैरानॉयड सिज़ोफ्रेनिया
रोगी को ऐसा विश्वास होने लगता है कि लोग उसके बारे में बातें करते है, उसके खिलाफ हो गए हैं, या उसके खिलाफ कोई षड्यंत्र रच रहे हो, उसे नुकसान पहुँचाना चाहते हो, कुछ ऐसी आवाजे सुनाई देना जो अन्य लोगों को न सुनाई दें, कुछ ऐसी वस्तुएं, लोग, या आकृतियाँ दिखाई देना जो औरों को न दिखाई दे, या शरीर पर कुछ न होते हुए भी सरसराहट, या दबाव महसूस होना,
4. डिसऑर्गनाईज्ड / हेबीफ्रीनिक सिज़ोफ्रेनिया
लंबे समय से चला आ रहा सिज़ोफ्रेनिया का एक प्रकार जिसमे व्यक्ति असामान्य हरकते और बेतरतीब बातें करना तथा उसकी रहन सहन का भी असामान्य हो जाना जैसे साफ सफाई ना रखना और गर्मी में भी वस्त्रों को अपने से लपेटे रखना और सर्दी में भी कपड़े ना पहनना | रोगी को लग सकता है कि कोई बाहरी ताकत उसके विचारो को नियंत्रित कर रही है, या उसके विचार उसके अपने नहीं है,
5. काटाटॉनिक सिज़ोफ्रेनिया
रोगी का चुप हो जाना या अत्यधिक तेज़ी में आ जाना , पेशियों मे तनाव व कडा हो जाना , हाथ पैरों कि मुद्रा में मोम जैसी बेतरतीब प्रकार का लचिलापन आ जाना |
6. अन्डिफरेन्शीऐटिड सिज़ोफ्रेनिया
अन्य सभी प्रकार के सिज़ोफ्रेनिया के लक्षणो का मिला जुला रूप एक प्रकार से ऐसे लक्षण जिनहे किसी अन्य सिज़ोफ्रेनिया के रूप मे परिभाषित नहीं किया जा सकता है |
7. रेसीडुयल सिज़ोफ्रेनिया
लगातार रोगी में सिज़ोफ्रेनिया के नकारात्मक लक्षणो का बना रहना और बहुत कम तीव्रता के विभ्रम , भ्रम और असामान्य व्यवहार का बने रहना और रोगी की जीवनशैली और कार्य क्षमताओ में सुधार न होना
8 पोस्टसिज़ोफ्रेनिया डिप्रेशन
सिज़ोफ्रेनिया के कठिन लक्षण समाप्त होने के पश्चात रोगी में कुछ नकारात्मक लक्षणों का बना रहना उसका चुप हो जाना और उदासी की स्थिति में आ जाना
इलाज, अन्य निर्देश एवं रोग से सम्बंधित जानकारिया :
• इस रोग का इलाज़ प्राय आजीवन है इलाज़ का मुखी उद्देश्य है रोगी को आजीवन समाज मे व्यवस्थित रखना और किसी भी स्तथि में उसके कार्यक्षमता में गिरावट ना आने देना और रोगी का एक सामनी व्यक्ति से भी ज्यादा अच्छी तरह अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त कर पाना |
• ये रोग पूरे परिवार को प्रभावित करता है और आनुवांशिक होने की वजह से इस रोग का ठीक रहना पूरे परिवार के लिए एक अच्छा संदेश होगा यानि की परिवार के किसी भी सदस्य मे ये रोग ठीक होने मे पूरे परिवार का सहयोग अपेक्षित है |
• इस रोग को दूर करने के लिए आजकल नई दवाईयों का इस्तेमाल हो रहा है जो कि काफी प्रभावशाली व सुरक्षित हैं,
• कुछ नयी प्रकार के इंजेक्शन जो 3 से 6 माह मे एक बार लगते हैं उपलब्ध है|
• दवा के साथ-साथ रोगी को सहायक इलाज़ (सप्पोर्टिव थिरेपी) की भी आवश्यकता होती है।
• लक्षण दूर हो जाने पर भी दवा का सेवन तब तक न रोकें जब तक की चिकित्सक न कहें समय से पहले दवा का सेवन रोकने से बीमारी दोबारा हो सकती है,
• कुछ कारणों की वजह से व्यक्ति को यह बीमारी बार बार होती है जिसे रीलेप्स कहते है l रीलेप्स की वजह से हर बार व्यक्ति की मस्तिष्क की कोशिकाओ की बहुत हानि होती है जिससे व्यक्ति के कार्य क्षमता में गिरावट बढ़ती जाती है|
• सिज़ोफ्रेनिया की वजह से व्यक्ति की व्यवहारिक और सामाजिक क्षमताओ में इतनी कमी आ जाती है और व्यक्ति बिलकुल निष्क्रिय सा हो जाता है और कोई भी कार्य प्रभावी रूप से नहीं कर पाता l
• अब इस बीमारी को एक व्यक्तिगत रोग नहीं बल्कि इसको एक पारिवारिक रोग कहा जाता है क्योकि रोगी के वजह से परिवार के हर सदस्य की कार्य क्षमता में कमी आने लगती है और परिवार में एक भय व्याप्त होने लगता है की यह रोग उसे या परिवार के किसी अन्य सदस्य को न हो जाये l
• चिकित्सक जब भी जाँच के लिए बुलाएँ समय पर जाँच जरूर करायें, भले ही रोगी पुरी तरह से लक्षणमुक्त क्यों न हो,
सिज़ोफ्रेनिया के रोगी क्या विवाह कर सकते है ?
• विवाह करने के बारे में पूरी जानकारी अपने चिकित्सक से अवश्य लें |
• यदि रोगी स्त्री है तो उसे गर्भधारण से पहले मनोचिकित्सक की सलाह लेना आवश्यक है,
• ताकि उसकी उसकी दवा में सही अनुपात में परिवर्तन करके उसको तथा गर्भ को किसी भी नुकसान से बचाया जा सके,
• स्तनपान कराते हुए भी चिकित्सकीय सलाह लेना आवश्यक है,
• रोगी की नींद व पोशक भोजन का ध्यान रखें, स्किजोफ्रेनिया के इलाज के लिए जो दवा दी जाती हैं वे काफी सुरक्षित हैं।
कुछ दवाईयों के साइड एफेक्ट्स ?
कुछ दवाईयों से निम्नलिखित अनावश्यक प्रभाव (साइड एफेक्ट्स) हो सकते हैं जो कि क्षणिक हैं और कुछ रोगियों में दवा बदलने से रोग तुरंत ठीक हो जाते हैं –
• हाँथ-पैर की कम्पन, थर्थाराना
• अत्याधिक सुस्ती का रहना,
• लार ज्यादा आना
• शरीर में दर्द या ऐंठन होना
• जुबान ल्रड़खड़ाना,
• वजन बढ़ने लगना, आदि।
इन अनावश्यक प्रभावों के होने पर दवा का सेवन रोके नही, क्योकि यह समय के साथ अपने आप ही कम हो जाते है तथा इनको रोकने के लिए सामान्य सी सावधानियाँ भी रखी जा सकती हैं और चिकित्सक इनको पूरी तरह से ठीक रखने के सुझाव दे देते हैं |
क्या स्किज़ोफ्रेनिया का रोगी सामान्य जीवन जी सकता है ?
स्किज़ोफ्रेनिया का रोगी मुख्य लक्षणों के दूर होने के बाद दवा लेते हुए बिल्कुल सामान्य जीवन जी सकता है। वह अपनी क्षमता के अनुसार नौकरी कर सकता है, पढ़ सकता है, दोस्त बना सकता है तथा अपने सभी सपने पूरे कर सकता है। सिज़ोफ्रेनिया का रोगी लक्षण मुक्त होने के बाद शादी कर सकता है, परन्तु उसे ध्यान रखना होगा की उसके जीवन में आए नए परिवर्तनो का असर उसकी नींद, तथा दवा पर न पड़े। यदि रोगी स्त्री हैं तो वह बिना डाक्टरी सलाह के गर्भ धारण न करें। सिज़ोफ्रेनिया के रोगी के बच्चों में यह रोग अनुवांशिक रूप से जा सकता है, परन्तु ऐसा हमेशा हो यह ज़रूरी नहीं है।
निष्कर्ष
आज इस बीमारी के निदान के लिए कई प्रभावी दवाये उपलब्ध है टेबलेट्स के अलावा प्रभावशाली लॉन्ग एक्टिंग इंजेक्शन भी उपलब्ध है जो महीने मैं सिर्फ एक बार ही दिया जाता है और मरीज को साथ मैं कोई और दवा लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती l
इस बीमारी के रोगी को औषधियों के अतिरिक्त व्यवहारिक चिकित्सा की आवश्यकता होती है क्योकि रोग की वजह से वो अपने सामान्य कार्य स्वाभाव, कार्य कुशलता और दिन प्रतिदिन की जीवन शैली के अति सामान्य व्यवहार और निपुण व्यवहारों से वंचित होता जाता है l
कोई भी व्याहारिक परिवर्तन इस रोग के सूचक हो सकते है जो महीनो पूर्व दिखाई दे जाते है l बीमारी के लक्षण या प्रारम्भ होते ही मानसिक रोग विशेषज्ञ/ न्यूरो साइक्यास्ट्रिस्ट से अविलम्ब संपर्क करना चाहिए जिससे इसके लक्षणों को समय के अंदर ही नियंत्रित किया जा सके और पीड़ित व्यक्ति एवं परिवारजन को सामाजिक, व्यवहारिक एवं आर्थिक हानि से बचाया जा सके l
all is well